लोगों की राय

विविध >> मैं हिन्दू हूँ

मैं हिन्दू हूँ

गुरुदत्त

प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सदन प्रकाशित वर्ष : 2003
पृष्ठ :126
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 5378
आईएसबीएन :81-88388-27-0

Like this Hindi book 5 पाठकों को प्रिय

266 पाठक हैं

हिन्दू धर्म की मान्यताएँ....

Main hindu hoon

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

प्रथम उपन्यास ‘‘स्वाधीनता के पथ पर’’ से ही ख्याति की सीढ़ियों पर जो चढ़ने लगे कि फिर रुके नहीं।
विज्ञान की पृष्ठभूमि पर वेद, उपनिषद दर्शन इत्यादि शास्त्रों का अध्ययन आरम्भ किया तो उनको ज्ञान का अथाह सागर देख उसी में रम गये।
वेद उपनिषद् तथा दर्शन शास्त्रों की विवेचना एवं अध्ययन सरल भाषा में प्रस्तुत करना ही गुरुदत्त की ही विशेषता है।  
उपन्यासों में भी शास्त्रों का निचोड़ तो मिलता ही है, रोचकता के विषय में इतना कहना ही पर्याप्त है उनका कोई भी उपन्यास आरम्भ करने पर समाप्त किये बिना छोड़ा नहीं जा सकता।


मैं हिन्दू हूँ
(हिन्दू धर्म की मान्यताएँ)

 

हिन्दुत्व ही क्यों ?

 

पिछले साठ सालों से स्कूल जाने वाले हर बालक-बालिका के मुख से तथा जनता के मुँख से यह गवाया जाता रहा है- मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना- जबकि तथ्य यह है कि पिछले पन्द्रह सौ वर्षों में विश्व में जितना खून मज़हब के नाम पर बहा है, उसकी कोई तुलना नहीं है। कत्ले-आम, बलात्कार, अत्याचार का तो कोई हिसाब नहीं।

हिन्दू ने प्रत्येक मज़हब का स्वागत किया है और इसे हिन्दुस्तान में फलने-फूलने का अवसर दिया है।
अब एक अन्य खतरनाक मज़हब ‘नास्तिक’ एक चुनौती बनकर आ रहा है। दुनिया में नास्तिक मत (कम्यूनिज़म) ने भी हंगरी इत्यादि देशों में कम रक्त नहीं बहाया। नास्तिक्य तथा कम्यूनिज़म भी मज़हब के अन्तर्गत आते हैं।

अभी बीसवीं शताब्दी पर ही दृष्टि डालें तो देखेंगे कि हिन्दुस्तान जैसे कश्मीर से कन्याकुमारी तक, हिमालय से पुरी तक एक सूत्र में बँधे देश को तीन टुकड़ों में मज़हबी आधार पर विभाजित कर दिया गया। यह उस मज़हबी जनून का कमाल है जो ‘नहीं सिखाता आपस में वैर रखना।’

एक मात्र हिन्दू धर्म ही ऐसा है जिसने विश्व भर में मानवता का प्रचार करने के लिए शान्ति दूत भेजे और बिना युद्ध किये विश्व भर को मानवता का पाठ पढ़ाया और प्रचार किया।

इस पर भी हिन्दू को साम्प्रदायिक कहना या तो मूर्खता ही कही जायेगी अथवा धूर्तता। हिन्दू कोई मज़हब नहीं है। यह कुछ मान्यताओं का नाम है। वे मान्यताएं ऐसी हैं जो मानवता का पाठ पढ़ाती हैं।

हिन्दुओं की धर्म पुस्तकों में मनुस्मृति का नाम सर्वोपरि है और मनुस्मृति धर्म का लक्षण करती है- धृति क्षमा दमोऽस्तेयं शौचम् इन्द्रिय-निग्रह, धीर्विधा सत्यमक्रोधो दशकम धर्म लक्षणम्। कोई बताये इनमें कौन सा लक्षण ऐसा है जो मानवता के विपरीत है।
स्मृति में धर्म का सार स्पष्ट शब्द में कहा है – श्रूयतां सर्वस्व श्रूत्वा चैवाव धार्यताम्, आत्मनः प्रतिकूलानि परेणाम् न समाचरेत।। (धर्म का सार सुनो और सुनकर धारण करो अपने प्रतिकूल व्यवहार किसी से न करो।
ऐसे लक्षणों वाले धर्म को साम्रप्रदायिक कहना तो मूर्खता की पराकाष्ठा कही जायेगी।

वास्तव में हिन्दू धर्म को न समझने के कारण दुनिया में अशान्ति मची हुई है। सम्पूर्ण भारत देशवासी हिन्दू ही हैं क्योंकि वे हिन्दुस्तान के नागरिक हैं। इस्लाम, ईसाई, पारसी, बौद्ध इत्यादि जो हिन्दुस्तान का नागरिक है वह हिन्दू ही है।

हमारे राजनैतिक नेता तथा आज के कुशिक्षित लोग अन्धाधुन्ध, बिना सोचे समझे लट्ठ लिये हुए हिन्दू के पीछे पड़ जाते हैं।
समस्या का हल तो है परन्तु राजनीति में आये स्वार्थी नेता अपना उल्लू कैसे सीधा करेंगे ?

बच्चों की पाठ्य पुस्तक में एक पाठ इस विषय में हो, कि हिन्दू क्या हैं, इसके मान्यताएं क्या हैं, और भारत के प्रत्येक नागरिक जो भी भारतवासी है, वह हिन्दू ही है।

हिन्दुओं की मान्यताएं शास्त्रोक्त हैं, बुद्घियुक्त हैं, किसी भी मज़हब के विरोध में नहीं। किसी भी मज़हब को मानने वाले वे हिन्दू की मान्यताओं को जो मानवता ही है, मान लें तो द्वेष का का कोई कारण नहीं रहेगा।
संक्षेप में हिन्दू की मानताएं हैं- जोकि शास्त्रोक्त हैं, तथा युक्तियुक्त हैं, इस प्रकार हैं-
1.    जगत् के रचयिता परमात्मा पर जो सर्वशक्तिमान हैं, अजर अमर है, विश्वास;
2.    जीवात्मा के अस्तित्व पर विश्वास;
3.    कर्म-फल पर विश्वास। इसका स्वाभाविक अभिप्राय है, पुनर्जन्म पर विश्वास;
4.    धर्म पर विश्वास। धर्म जैसा कि मनुस्मृति में लिखा है, जिसका सार है- आत्मनः प्रतिकूलानि परेषाम् न समाचरेत्।।

हिन्दू के इतिहास पर, हिन्दू की विवेचना पर तथा हिन्दू की मान्यताओं पर श्री गुरुदत्त जी ने तीन पुस्तकें लिखी हैं- हिन्दुत्व की यात्रा, वर्तमान दुर्व्यवस्था का समाधान-हिन्दू राष्ट्र तथा मैं (हिन्दू धर्म की मान्यताएं), जो प्रत्येक विचारशील व्यक्ति को पढ़नी चाहिएँ।

 

-प्रकाशक

 

प्रथम परिच्छेद
(1)

 

मैं हिन्दू हूँ

 

खाना, पीना पहरना, खेलना, कूदना तथा माता-पिता, भाई, बहनों का स्नेह इनके अतिरिक्त जो सबसे पहली बात अपने विषय में मुझे स्मरण है, वह यह है कि मैं हिन्दू हूँ।
यह बात मन में इस कारण सबसे पहले अंकित हुई, क्योंकि हमारा परिवार एक ऐसे मुहल्ले में रहता था, जो चारों ओर से मुसलमानों के मुहल्लों से घिरा हुआ था। मुहल्ले का नाम था ‘पिप्पल वेड़ा’। लाहौर में मोची दरवाजे के भीतर मुसलमानों में बसा हुआ एक लम्बा चौड़ा क्षेत्र लाँघ कर यह मुहल्ला था। मुहल्ले में सात गलियां थीं और इन गलियों के समूह में पहुँचने के लिए किसी मार्ग से भी जायें, मुसलमानों के क्षेत्र से होकर जाना पड़ता था। मोची दरवाजा के नाम पर उस काल में कोई दरवाजा नहीं था। यह कहा जाता था कि मुसलमानी काल में, नगर में अन्य दरवाजों की भाँति वहाँ भी एक दरवाजा था। परन्तु वह गिरा तो किसी को उसके बनवाने की चिन्ता नहीं हुई। मैंने अपने होश-हवास में वहाँ कभी कोई दरवाजा नहीं देखा। इस पर भी लाहौर नगर में प्रवेश करने के तेरह दरवाजों में वह भी एक दरवाजा कहाता था।
 
इस ‘दरवाजे’ में  घुसते ही दो मार्ग बन जाते थे। एक नवाब के चौक को जाता था और एक नगर के मध्य में स्थित ‘रंगमहल’ नामक स्थान को जाता था। दोनों ओर ही मुसलमानों की बस्ती आरम्भ हो जाती थी। रंगमहल की ओर जाते हुए बीसियों गलियों में सैकड़ों मकान मुसलमानों के थे। लगभग डेढ़ फर्लांग मार्ग निकल जाने पर मुहल्ला पिप्पल बेड़ा था, इस मुहल्ले में सात गलियाँ थीं। कूचा जवाहरियाँ सड़क के एक ओर तथा दूसरी ओर कूचा रामशाह खांड वाले; फिर उसी ओर, जिधर कूचा जवाहरियां था, एक अन्य कूचा था, कूचा मैनियां।
 इससे आगे चलकर चार गलियाँ थीं। दो सड़क की ओर जाते तथा दो सड़क की दूसरी ओर। मोची दरवाजे से रंगमहल को जाते हुए सड़क के दाहिनी ओर कूचा भूरियां।
इन सात हिन्दू गलियों के उपरान्त पुनः मुसलमानों के मकान और गलियाँ तथा बस्ती थी।

इन सात गलियों के अतिरिक्त भी हिन्दुओं के कुछ मकान थे, परन्तु उनकी पीठ ही उस सड़क की तरफ थी और उन मकानों के मुख उन मुहल्लों में पड़ते थे, जिनके मुख दूसरी सड़क पर खुलते थे। इन मकानों की पीठ की दीवारें ही मोची वाली सड़क पर थीं। उधर से आने-जाने का कोई मार्ग नहीं था।
अपने मुहल्ले का यह संक्षिप्त विवरण लिखने में प्रयोजन यह है कि इस मुहल्ले की स्थिति का हिन्दू होने की मान्यता के साथ सम्बन्ध है। सातों गलियों में कोई मुसलामान नहीं रहता था और इन सातों गलियों के हिन्दुओं को नगर के दूसरे भागों में जाने के लिए मुसलमानों के मुहल्ले में से होकर ही जाना पड़ता था।

मोची दरवाजे से आने वाली सड़क के बायीं ओर जितनी गलियां थी, उनके पिछवाड़े उन गलियों के मकानों से मिलते थे जो शाहाल्मी से दरवाजे से मच्छी हट्टा वाली सड़क की गलियों में थे। परन्तु  इधर की गलियों का उधर की गलियों से सम्बन्ध नहीं था।

इसमें कारण मेरे पिता जी ने बताया था। उनका कहना था कि जब तक नगर में शान्ति होती है, तब हमारे मुहल्ले के लोग शान्तिपूर्वक आते-जाते हैं और मुसलमान मुहल्लों में से गुजर सकते हैं। तब मच्छी हट्टा के लोग भी हमें अपने मकानों में से गुजर जाने की स्वीकृति दे देते हैं। और हिन्दू मुसलमान फसाद के दिनों में जब आवश्यकता पड़ती है तो दूसरे मुहल्ले वाले अपनी रक्षा के लिए हमें भी अपने मकानों में से आने-जाने नहीं देते।

इसका स्वाभाविक अर्थ यह है कि अंग्रेजी राज्य से पहले और कदाचित महाराजा रणजीत सिंह के काल से भी पहले हिन्दू-मुसलमान फसाद होते रहते थे।
 
अंग्रेज़ी काल में भी फसाद होते रहे हैं। मुझे अपने जीवन काल में पांच बड़े फसाद स्मरण हैं। ये सन् 1947 से पहले के हैं। एक जब मैं अभी चार वर्ष का था, तब भारी फसाद हुआ था। मुझे उस फसाद की एक बात स्मरण है मैं अपने मकान की ऊपर की मंजिल पर बैठा था कि नीचे बाजार में बड़े जोर-जोर के गोल फटते सुनाई दिये। मैं भी खिड़की से झांक कर देखने लगा था। बाजार में भीड़ थी और हमारी दुकान में से बाहर फेंका जा रहा था और गोले चलने का-सा शब्द हो रहा था खड़ी भीड़ में भगदड़ मची और सड़क साफ हो गई कुछ ही उपरान्त पुलिस के सिपाही आ गये थे और बाजार में गश्त लगे थे।

 पीछे मुझे पता लगा कि मुसलमान और हिन्दुओं में झगड़ा हो गया था। मुसलमानों की भीड़ हमारे मुहल्ले पर चढ़ आयी थी। पिताजी की दूकान पर सोडा वाटर की बोतलें बिकती थीं।  पिताजी और भाई साहब ने वे बोतलें भीड़ पर फेकीं थीं। वे फटती हुई गोले चलने का शब्द करती थीं।

इस फसाद का कारण कई वर्ष उपरान्त पता चला था। मेरी एक बहन बाल विधवा थी। वह वहीं से घर आ रही थी कि एक मुसलमान ने उस पर कुछ टीका-टिप्पणी की। बहन ने पाँव से स्लीपर उतार टीका-टिप्पणी करने वाले पर दे मारा। वह बहन की तरफ लपका।

बहन भागकर अपने मकान के नीचे पिताजी की दुकान पर आ गयी। दुकान पर बैठे मुहल्ले के एक पहलवान मणिराम ने उस मुसलमान की, जो बहन की तरफ लपका था, खूब मरम्मत की। इस पर दो सौ से ऊपर मुसलमानों की भीड़ हमारे मकान को फूंक देने के लिए आ गयी। इस समय सोड़ा वाटर की बोतलें काम आयी थीं। कोतवाली में खबर गयी तो वहाँ के एक दर्जन सिपाही लाठियां लिए हुए आ गये।

प्रथम पृष्ठ

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai